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सुनील त्रिपाठी

Tragedy Inspirational

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सुनील त्रिपाठी

Tragedy Inspirational

क्यों खल रहीं हैं बेटियाँ

क्यों खल रहीं हैं बेटियाँ

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गर्भ में इन्सान को क्यों, खल रहीं हैं बेटियाँ ।

कर स्वयं हर प्रश्न का जब हल रही हैं बेटियाँ ।


खेलने की उम्र में   होकर जुदा माँ बाप से ।

भाइयों को पाल कर खुद पल रहीं हैं बेटियाँ ।


नौकरी शिक्षा चिकित्सा, या सुरक्षा देश की ।

नित नये क़िरदार में अब, ढल रहीं है बेटियां ।


कर रहे मैली उन्हें   दुष्कर्म कर पापी यहाँ ।

जन्म से तो शुद्ध.   गंगाजल रही हैं बेटियाँ । 


दीजिए संतोष रख,   बेटे सरीखी परवरिश।

सर्वदा संतोष का,  मृदु फल रही हैं बेटियाँ । 


आप निर्बलता स्वयं की मत समझिए अब इन्हें।

निर्भया हैं,    अब कहाँ निर्बल रही हैं बेटियाँ।


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