क्यों खल रहीं हैं बेटियाँ
क्यों खल रहीं हैं बेटियाँ
गर्भ में इन्सान को क्यों, खल रहीं हैं बेटियाँ ।
कर स्वयं हर प्रश्न का जब हल रही हैं बेटियाँ ।
खेलने की उम्र में होकर जुदा माँ बाप से ।
भाइयों को पाल कर खुद पल रहीं हैं बेटियाँ ।
नौकरी शिक्षा चिकित्सा, या सुरक्षा देश की ।
नित नये क़िरदार में अब, ढल रहीं है बेटियां ।
कर रहे मैली उन्हें दुष्कर्म कर पापी यहाँ ।
जन्म से तो शुद्ध. गंगाजल रही हैं बेटियाँ ।
दीजिए संतोष रख, बेटे सरीखी परवरिश।
सर्वदा संतोष का, मृदु फल रही हैं बेटियाँ ।
आप निर्बलता स्वयं की मत समझिए अब इन्हें।
निर्भया हैं, अब कहाँ निर्बल रही हैं बेटियाँ।