बाबा
बाबा
बाबा गांठ तुम्हारी बाँधी, किसने टूटी खटिया से।
क्यों दादी कुछ नहीं मांगती,अब पत्थर की बटिया से।
कभी सवेरे लोटा भरकर, छाछ पिया करते थे तुम।
दोनों पहर दिव्य भोजन का,स्वाद लिया करते थे तुम।
भात कटोरा भर अब खाते, आलू की दो गटिया से।
क्यों दादी कुछ नहीं मांगती,अब पत्थर की बटिया से।
बड़े बुजुर्गों को जीवन भर, मान दिया सम्मान किया।
मात पिता का गया श्राद्ध कर,पिंड दान, गौदान किया।
संस्कार किस तरह हो गये, फिर बच्चों के घटिया से।
क्यों दादी कुछ नहीं मांगती,अब पत्थर की बटिया से।
भाव निरादर तिरस्कार के,देते हैं प्रतिदिन टेंशन।
आव भगत होती बस उस दिन, मिलती है जिस दिन पेंशन।
आदर से ले जाते चाचा, बैठा कर फटफटिया से।
क्यों दादी कुछ नहीं मांगती, अब पत्थर की बटिया से।
मन उपेक्षा से स्वजनों की, आहत, कुंठित पीड़ित है।
देख किंतु नाती पोतों को, यह नश्वर तन जीवित है।
रिश्तों के धागों में अटके, प्राण मोह की कटिया से।
क्यों दादी कुछ नहीं मांगती, अब पत्थर की बटिया से।