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Bhavna Thaker

Tragedy

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Bhavna Thaker

Tragedy

स्त्री तन

स्त्री तन

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कविताओं में नक्काशी सा तराशा गया स्त्री का तन

हकीकत की धरातल पर वहशीपन की

पहली पसंद बन जाता है। 


कहाँ उमा दुर्गा का दर्शन करती है

मर्द की आँखें औरत में,

उन्मादित होते आँखों की पुतली

पल्लू को चीरकर आरपार बिंध जाती है।


लज्जित सी समेटते खुद को बांध लेती है दायरे में,

तकती है गीध सी प्यासी ही नज़र गुज़रती है

जब स्त्री हर गली हर मोड़ से। 


शृंगार रस की शान सुंदरी शब्दों में पिरोते

पूजनीय सी लगती है,

वही स्त्री जो गलती से टकरा जाए

मर्द से तो भोगनीय बन जाती है।


रचनाओं में वक्ष को बच्चे का

पयपान वर्णित किया जाता है,

पर सरके ज़रा दुपट्टा तो जानें

क्या-क्या करार दिया जाता है। 


शब्दों में सजकर संसार की सृजिता

कितनी गरिमामयी लगती है,

मर्दों की ज़ुबान पर गाली बन

ठहरते ही रंडी बन तड़पती है। 


रहने दो पन्नों पर ही नारी सम्मान को

बख़्शते नहीं दरिंदे बच्ची जैसे मांस हो,

लूटने पर लाज घर-घर की खबर बन जाती है।


जिस कमनीय काया को

फूलदल की टहनी लिखते

कलम कवि की हद पार कर जाती है,

उसे पाकर अकेली मच्छर सी मसली जाती है।


कवियों की कल्पना,

पंक्तियों की प्रेरणा बेच दी जब जाती है,

वह रमणी कोठे पर रात भर वीर्य से नहाती है। 


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