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Phool Singh

Tragedy

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Phool Singh

Tragedy

दुनिया और नारी

दुनिया और नारी

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दुनिया मुझ को समझ सकी ना 

मुझ को भी ये ना समझ आई  

स्वतंत्रता की पुकार करूँ तो 

मुझ पर कितने दोष लगाई।।

 

चुप रह कर जो सहती सब कुछ 

घुननी नारी मैं कहलाई 

अपनी हक की लड़ाई लड़ूँ 

तो बदतमीज नारी हूँ कहलाई।।


शिक्षा का जो दामन पकड़ा 

ऊँची उड़ान मैं नभ लगाई 

पंख लगाई जो अरमानों के 

बेलगाम नारी मैं कहलाई।।


पर्दे में छिपी रहूँ तो 

असभ्य, अनपढ़, गंवार मैं कहलाई 

कितना कर पर नाम ना मेरा 

बोलूँ कुछ तो बड़बोली कहलाई।।


क्या करूँ मैं कुछ तो बताओ 

कहाँ किसी से करूँ दुहाई 

नीर बहाती एकांत में जाकर 

विनती मेरी ना दे सुनाई।।


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