उम्मीद
उम्मीद
इक थी आयु जब दृष्टि थी
फूलों सी मुस्काती
न रिश्तों के बंधन ,
न धैर्य का समर्पण,
न आज की फिक्र थी हमें,
न कल का इंतजार था हमें,
पर आ गए इस उम्र की राह पर हम,
आज की भाग दौड़ में,
और कल की चिंता में,
यूं ही पिसते जा रहे है हम,
कुछ उम्मीद तो जलाए जा रहे है हम।
दर्द है बहुत,
जब समझ नहीं पाता कोई हमें,
ऐसा नहीं चिंता है नहीं हमें अपनो की,
पर निभाने है हमें नहीं आता।
सीख रहे छोटे गलतियों से हम,
पर चूक न जाने कहां रह जाती है,
शत प्रतिशत कोशिशें करे जा रहे हम,
इंसान है, कुछ उम्मीद तो जाग ही जाती है।
चाहे घर की लड़ाई,
या हो काम की कार्रवाई
कर रही बलिदान बहुत सारी,
पर किस्मत के आगे जीत कौन है सकता,
आज उजाला तो कल
अंधकार सा,
उम्मीद तो किस्मत से भी किया था,
मुकर कर वो भी जब चली जाती,
तो है कौन हम,
इंसान ही तो है, कुछ उम्मीद टूट भी सकती।
