STORYMIRROR

Manoj Sharma

Tragedy

3  

Manoj Sharma

Tragedy

जद्दोजहद

जद्दोजहद

1 min
262



ज़ाया ही जाती रही ज़िन्दगी की जद्दोज़हद 

ना नींद ही पूरी ली कभी, ना ख्वाब ही पूरे कर सके...

किताबी बातेंं हैैं महज़ चैन ओ सुकून और फुर्सतें

जी के रहते जिए नहीं, ना ही मर्ज़ी से मर सके...

मसीहा भी बाँटता रहा बस रंजिशें और नफ़रतें

ना रहीम की ही सुनी कभी, ना राम राम ही कह सके...

गुमराह सा करती रहीं इबादतों की रवायतें

ना रोज़े ही हुए मुकम्मल, ना पेट ही अपना भर सके...


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy