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Rajeev Tripathi

Tragedy

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Rajeev Tripathi

Tragedy

दहलीज़

दहलीज़

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घर की दहलीज़ पूजी जाती है

नई दुल्हन के लिए दहलीज़

अहम भूमिका निभाती है

अक्षत से भरा लौठा लांग

कर कर ही दुल्हन

शादी की रस्म निभाती है अचानक

फ़िर उसे क्या हो जाता है

कुछ दिनों के बाद

दुल्हन दहलीज़ की मर्यादा

भूल जाती है

घर के रिश्ते उसे बेमानी

नज़र आते हैं

बाहर वाले उसे बहुत

रास आते हैं

संबंधों में अचानक

पड़ी दरार से

वह यह मर्यादा रेखा

लांग जाती है

चली जाती है वह अपने

घर को छोड़कर

दूसरों में ही उसे अपनी

ख़ुशी नज़र आती है

भविष्य उसे घर के बाहर

नज़र आता है

घर के लोगों से तो वो बात

करने से कतराती है

दांपत्य जीवन मानो टूट कर

बिखर जाता है

दिल को ठेस लगती है और

सारी मोहब्बत

ही फ़रेब नज़र आती है 

रखा जाना चाहिए मर्यादा

का ख़्याल

लूटी हुई दौलत किसी काम

नहीं आती है

सारा क़सूर क्या औरत का

ही होता है

क्यों औरत अपनी सीमा

लांग जाती है

पुरुष प्रधान देश में

यह भी सच है

यहांँ नारी पूजी जाती है

तो फिर क्यों महत्वाकांक्षा

की एक होड़ सी लग जाती है 

पति पत्नी के रिश्ते इतने

कमज़ोर क्यों हो जाते हैं

क्यों पूजी जाने वाली घर की

दहलीज लांघी जाती है

प्यार विश्वास समर्पण त्याग 

समानता की भावना क्यों

गौण हो जाती है

क्यों पूजी जाने वाली घर की

दहलीज लांघी जाती है।


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