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Lalit Saxena

Abstract Tragedy

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Lalit Saxena

Abstract Tragedy

बेनाम रिश्ते

बेनाम रिश्ते

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कभी कभी उठ जाते है कदम वजूद को दफनाने में

बेवक्त जब खुद ही किस्मत का नकाब उतर जाता है

आज कैसे..? क्या कहूं..?, वक्त भी पूछ उठा

ऐसे लम्हों से गुजर, अक्सर मैं क्यूं बहक जाता हूं

बदनाम करते है लोग, बेनाम को नाम देते हुए

सरेआम महफ़िल में ना जाने कब मज़ाक बन जाता हूं

हर शख्स यहां वफ़ा के साथ तर्क ए वफ़ा करता है

राह चलते इन वफ़ा परस्तों को अब आगाह कर जाता हूं

रिश्तों की पहचान हो जाती है नाजुक दिल को

बेनाम रिश्तों में जब कभी अपना नाम ढूंढने जाता हूं।



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