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Manisha Patel

Abstract

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Manisha Patel

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वसंत है आया

वसंत है आया

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वसुधा पर बिखेरने प्रीत रंग, देखो वसंत है आया,

मोहक सुगंध लिए पवन भी जैसे, बह रहा है बौराया।


सज रही धरा ओढ़ धानी चुनर, लिए पीत रंग के बूटे,

महक रहे बाग, आम्र डालियों पर हैं आम्र बौर फूटे।


कोयल हुई मतवाली, कूक कूक कर सुनाए बसंत राग,

चटकी कलियांँ, फूल भी पवन संग बिखराए पराग।


मस्त मलंग से भौरों की गुनगुन में भी है एक संगीत,

मलय से बहती मंद पुरवाई भी, सुना रही है मधुर गीत।


स्वागत हो ऋतुराज का और उल्लेख ना हो सरसों का,

कैसे कहो सार्थक हो वसंत, कैसे मन भरे तरसों का।


स्वागत है कुसुमाकर, तुमसे ही तो है जीवन के सब रंग,

पतझड़ से रिक्त हुई शाखों पर, तुम ही तो भरते नई तरंग।


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