'गुरु एक दीपक'
'गुरु एक दीपक'
प्रज्वलित हुआ गुरू रूपी दीपक जब, अज्ञान तिमिर सारा लुप्त हुआ,
ज्योति ज्ञान की जल गई अंतस् में जब,अंतर्मन मानव का शुद्ध हुआ।
पाकर साक्षरता मानव सत्य असत्य का भेद करने में सर्वथा समर्थ हुआ,
गुरु द्वारा दिए गए ज्ञान की आंँच में तप कर वह कुंदन सा विशुद्ध हुआ।
गुरु है तमोभेदी, गहरे से गहरे तम को भी उन्होंने विच्छिन्न किया,
सूर्य सा प्रखर तेज पा कर उनसे, शिष्यों का जीवन सर्वथा शुद्ध हुआ।
पा लिया कैवल्य ज्ञान को जिसने संसार में वह तो केवल बुद्ध हुआ,
शरण में उनकी ज्ञान प्राप्त किया जिस जिस ने वह प्रत्येक मानव प्रबुद्ध हुआ।
गुरु बने क्रूर अंगुलिमाल के,करुणा का उसे जीवन बोध दिया ,
जीवन का सार ग्रहण कर लिया जब गुरु से तो सन्मार्ग भी कहांँ अवरुद्ध हुआ।