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Mayank Verma

Inspirational

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Mayank Verma

Inspirational

बच्चे फरमाइशों के

बच्चे फरमाइशों के

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क्यों बेकार में लड़ती हो ? 

क्यों नाहक झगड़ती हो ?

वो खेलने भी चले गए, 

तुम अब तक अकड़ती हो।


मेरे तुम्हारे के खेल में, 

क्यों अपना खून जलाती हो।

बच्चों की बात में,

क्यों ख़ुद बच्ची बन जाती हो।


न मेरे, न तुम्हारे और न हमारी ख्वाहिशों के।

ये बच्चे तो हैं बस, अपनी फरमाइशों के।


कभी दादा की कुल्फी, अंगूर की बेल के, 

कभी नाना के हवाई जहाज़, छुक छुक रेल के।

कभी दादी के लड्डू, नोटों की पुड़िया के,

कभी नानी के दिए हुए गुड्डे और गुड़िया के।


न मेरे, न तुम्हारे और न हमारी ख्वाहिशों के।

ये बच्चे तो हैं बस, अपनी फरमाइशों के।


कभी मेले में रो कर सबको दिखलाते हैं,

पापा नहीं, तो चाचा पर ज़ोर आज़माते हैं।

मेले के ठेले से पैर पटक कर चले आते हैं,

मानते हैं तभी जब चाचा खिलौने दिलाते हैं।


न मेरे, न तुम्हारे और न हमारी ख्वाहिशों के।

ये बच्चे तो हैं बस, अपनी फरमाइशों के।


तुमने शैतानी पर कान खींचे तो पापा के,

मैंने पढ़ाई पर डांटा तो लपककर मम्मा के।

इनके बदलते जवाबों में तुम मत बदलना,

मशगूल हो जाएंगे ख़ुद में ये, 

साथ हमें है रहना।


न मेरे, न तुम्हारे और न हमारी ख्वाहिशों के।

ये बच्चे तो हैं बस अपनी फरमाइशों के।


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