STORYMIRROR

Manisha Patel

Abstract Tragedy Inspirational

4  

Manisha Patel

Abstract Tragedy Inspirational

//दुर्दशा नारी की//

//दुर्दशा नारी की//

1 min
364

बाँधकर अपने ही स्वयं स्थापित मानकों की झिल्ली में नारी को, 

पुरुषोचित अहं बार-बार स्वामित्व की हुंकार है भरता,

दर्शा कर नारी को अबला, शक्ति हीन और अधीन,

मान्यताएँ अपनी थोप कर उस पर, उसे प्रताड़ना देते जाता।


कहीं जन्म न लेने दिया, जाता कोख में ही मारा जाता,

कहीं जन्म के पश्चात, पग पग पर भेदभाव किया जाता,

उसकी क्षमता का आकलन न होता कभी उसके सामर्थ्य से,

खुद को समर्थ समझने वाला पुरुष, उसे अक्षम बता जाता।


बड़ा ही लचीला मानस है... पुरुष प्रधान समाज का क्या कहें,

अपनी प्रतिकूल परिस्थितियों में नारी को ढाल बना जाता,

वक़्त आता उसकी ढाल बनने का तब, हर बार पीछे हट कर जाता,

समय समय पर न जाने क्यों यही पुरुष, नारी की गरिमा भूल जाता।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract