STORYMIRROR

Manisha Patel

Abstract Classics

4  

Manisha Patel

Abstract Classics

टुकड़े दिल के

टुकड़े दिल के

1 min
246

टुकड़े टुकड़े हुए दिल के,ज़ख्म मर्ज़-ए-इश्क़ का गहरा था,

सुन न पाया आहट बेवफ़ाई की प्यार में हुआ बहरा था।


गाफ़िल ही रहे हम तो बेवफ़ा के इश्क़ का दम भरते रहे,

देखें हक़ीक़त कैसे आंँखों पर नशीले नैनों का पहरा था।


दीवाने हुए जाते थे एक नज़र पर उनकी,जाँ लुटाते रहे,

दिल भी नादान उनके बेपनाह हुस्न के भंवर में ठहरा था।


टूटे हुए सपनों की किरचें आज हम समेट रहें हैं रोते हुए,

रुसवाईयांँ झेलते सहला दिया ज़ख्म को जो अभी हरा था।


ख़्वाब देखे थे बड़ी हसरत से हमने खुशनुमा बहार के,

उतरा नशा इश्क़ का,सामने आँंखों के ख़ार-ओ-सहरा था।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract