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Abhisekh Prasanta Nayak

Abstract

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Abhisekh Prasanta Nayak

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आक्रमण

आक्रमण

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जंग तो चल रही है आज मेहनत के मैदानों में...

लड़ रहा है आज तू ज़िन्दगी के इन तूफ़ानों में...

रोक ना पाए अब तुझको तेरे ही लक्ष्य तक...

गूँज रहा है नाम तेरा जंग के इन जुबानों में...

ना लेना तू कभी ना देना तू शत्रुओं को शरण...

पाना है विजय अगर कर ले आज तू आक्रमण...


खराब हो चला ज़माना सारा खो गये हर कोई अपने ख़्याल में...

डरा दे आज तेरे वार से ना रखना उसे सही हाल में...

जाल तो बिछा रहे है अगर कोई यार अपना...

तो छाप दे तू निशान अब कांटे भरी खाल में...

बंदूकों से कर ले अब तेरे शत्रुओं का नामकरण...

पाना है विजय अगर कर ले आज तू आक्रमण...


बातों से ना माने अगर मानते है यहाँ लातों से...

पनप रहा है हर बात कोई कितने दिन कितने रातों से...

अपने मक़सद तक चल रहे बनके हमराही कोई यहाँ...

बनती नहीं हर समाधान यहाँ कितने ही मुलाकातों से...

पार कर ले अब तू जीवन के कई चरण...

पाना है विजय अगर कर ले आज तू आक्रमण...


जल रहे है मासूम कई बदले की इस आग में...

नफ़रत के गुल खिल रहे ज़िन्दगी के इस बाग़ में...

वक़्त अब तो आया है सबको होश में आने को...

डाल दे आज अपने जज़्बात मन के इस चिराग में...

उखाड़ दे अब तू दुश्मनों के फ़ैला ये चमन...

पाना है विजय अगर कर ले आज तू आक्रमण...


सत्य शान्ति के राहें तू सबको दिखाके चल...

सोच से नहीं कर्मों से तेरे निकाल हर समस्या का हल...

महफ़ूज रहे अगर तेरे इन मजबूत हाथों में...

तो चमक उठेगा यूँ अपना आनेवाला कल...

होने दे अब हर तरफ़ कर ले तू जागरण...

पाना है विजय अगर कर ले आज तू आक्रमण...


फैल गयी है हर तरफ़ नफ़रत का ये ज़हर...

मच गयी है चारों ओर तबाही का ये कहर...

बीतने लगा है अब तो बुराई का ये पहर...

दुःख के मंज़र में डूब चला है ये शहर...

खोने लगा है अब तो हर पल ये अमन...

पाना है विजय अगर कर ले आज तू आक्रमण...



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