एक चिट्ठी की दास्तान
एक चिट्ठी की दास्तान


मैं हूँ एक चिट्ठी यारा सुन ले तू मेरी कहानी
किसी की मैं याद तो किसी की हूँ निशानी
थी मैं कोरा कागज़ भर दिया मुझ को स्याही से
चाहे किसी की ख़बर चाहे हो बरक़त ईलाही से
पढ़ते जब मुझ को आँखों में आ जाता है पानी
मैं हूँ एक चिट्ठी यारा सुन ले तू मेरी कहानी
कोई मुझ में हर अपना ख़्वाब सजाए रखता है
कोई मुझ में अपनी दिल की बात बताए रखता है
कभी यादों का गुलदस्ता तो कभी गीत के बोल
कोई मुझसे यूँ हर एक बात सुनाए रखता है
यादों की अल्फ़ाजों की मैं हूँ इकलौती जुबानी
मैं हूँ एक चिट्ठी यारा सुन ले तू मेरी कहानी
रहती थी मैं पहले हर मन के बसेरों में
मिलने लगी हूँ मैं अब दफ़्तर के ढेरों में
डूबा है अब हर इंसान आज के मझधार में
खो गयी हूँ मैं वक़्त के इन पहरों में
मुझ पे कोई क़िताब तो कभी लिखते है कहानी
मैं हूँ एक चिट्ठी यारा सुन ले तू मेरी कहानी...