STORYMIRROR

Abhisekh Prasanta Nayak

Tragedy

4.8  

Abhisekh Prasanta Nayak

Tragedy

अब तक ज़िन्दा हूँ मैं...

अब तक ज़िन्दा हूँ मैं...

1 min
335


चारों ओर गूँज रहे है मेरे यूँ हज़ारों सवाल कई

नाम पर आते है ये मेरे यूँ तो बवाल कई

मुश्किलों के जंजीरों से तो बन्धा हूँ मैं

चीखकर तो यूँ कह रहा अब तक ज़िन्दा हूँ मैं

बातें है कुछ अनकही उनसे तो अनजान हूँ मैं

जानके भी इन्हें मैं मगर सबसे तो नादान हूँ मैं

आसमानों में उड़ता रहा वो परिन्दा हूँ मैं

चीखकर तो यूँ कह रहा अब तक ज़िन्दा हूँ मैं

अतीत से जूझ रहा मैं उन ख़्यालों में खोया था

गहराइयों में डूब रहा मैं उन नींदों में सोया था

बदले की आग में जल रहा बनके वो दरिंदा हूँ मैं

चीखकर तो यूँ कह रहा अब तक ज़िन्दा हूँ मैं

गूँज रही है कानों में मेरे अतीत के वो सौ बातें

बरस रही है आजकल मुझपर ख़ून के वो बरसातें

पाया है जो ये अंजाम मेरा हुआ इनसे शर्मिन्दा हूँ मैं

चीखकर तो यूँ कह रहा अब तक ज़िन्दा हूँ मैं



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy