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Dr Shailesh Jain

Tragedy

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Dr Shailesh Jain

Tragedy

ज़िंदगी सच बता, क्या तू हिसाब लेती है ?

ज़िंदगी सच बता, क्या तू हिसाब लेती है ?

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ज़िंदगी सच बता, क्या तू हिसाब लेती है...

बचपन में ये सिखलाया के इंसान बनना है...

जवानी में समझ आया के धनवान बनना है....

बुढ़ापे में पता चल पाया के गफ़लत थी ये सारी...

अंधी दौड़ की पनप गयी थी ये बीमारी....

तू भी अजीब दांव पेच में फँसा देती है....

ज़िंदगी सच बता, क्या तू हिसाब लेती है?


ये सभी पैसे वाले...ये इज्जत आबरू वाले...

एक पंक्ति में खड़े कर दिए तुमने आज सारे...

फिर हमें ता ऊम्र क्या कमाना था....

पैसे कमाने की चाहत में लगा पूरा ज़माना था।

इंसानियत को भूल...बनावट का हिजाब देती है...

ज़िंदगी सच बता...क्या तू हिसाब लेती है?


आज बैठा हूँ हाथ पर हाथ धरे...

लाशों से शमशान अटे पड़े...

अपने अचानक से साथ छोड़ जा रहे हैं

जो बच गए, किसी अनदेखे ख़ौफ़ में जीए जा रहे हैं

उनके जाने के बाद तू उनके अपने पन का एहसास देती है

ऐ ज़िंदगी सच बता...क्या तू हिसाब लेती है...


हम में जज़्बा है औरों में जोश भरने का

सुना था तू इम्तिहान लेती है...

अब हम भी तैयार हैं तराजू में बैठने को तेरे 

देखें हमें ये मेहनत क्या अंजाम देती है 

ज़िंदगी सच बता, क्या तू हिसाब लेती है....


जब तक जियेंगे ...अपना फ़र्ज़ निभाते रहेंगे

तुझे हमारे होने का एहसास दिलाते रहेंगे

याद करेगी ये दुनिया और तू भी ऐ ज़िंदगी

की ऐसे भी कुछ बंदे आते जाते रहेंगे

इतने सबक़ देने के बाद भी...सुना है तू सबकी चहेती है

ज़िंदगी सच बता, क्या तू हिसाब लेती है....!


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