दोहे सुल्तानी -३
दोहे सुल्तानी -३
जिम्मेदारी छोड़कर, भागा जो इंसान
मूरख थे हमने उसे, बना दिया सुल्तान ।१
जिसने पाली ही न हो, खुद कोई संतान
संतानों से प्रेम क्या, जाने वह सुल्तान ।२
जिसका हो न कुटुंब को, कोई भी अवदान
क्या देगा वह देश को, बना अगर सुल्तान ।३
पत्नी को जिसने कभी, दिया नहीं हो मान
संवेदना विहीन ही , होगा वह सुल्तान । ४
बेटी पाली ही नहीं, दिया न कन्यादान
क्या बेटी के मर्म को, जाने वह सुल्तान ।५
जिसने देखा ही नहीं, घर परिवार मकान
मित्रों पर बरसाएगा, प्रेम वही सुल्तान ।६
किसकी भी माने नहीं, सुने न देकर कान
औरंगजेब समान ही, होगा वह सुल्तान ।७
जो जारी करता रहे, तुगलक-से से फरमान
तड़पाएगा देश को, ऐसा ही सुल्तान ।८
बोल मदारी की तरह, चुटकी भरे बयान
जनता को बंदर न क्यों, समझे वह सुल्तान ।९
दास बनें मजदूर सब, बंधुआ बनें किसान
तैयारी में जोर से, लगा हुआ सुल्तान ।१०
