धन
धन
धन पाए लालच बढ़ा, पद पाए अभिमान ।
जिनका मन पर संतुलन, वे नर देव समान ।।१
धन वैभव जितना बढ़ा, उतनी बढ़ी न शांति।
मठ, मंदिर, आश्रम गए , पाने को विश्रांति ।।२
धन का, बल का, बुद्धि का, होता जहां विकास ।
आ ही जाता है वहां, सहज आत्मविश्वास ।।३
अकुलाता है धन अगर, हो जाता है श्रेय ।
उछल, बनाता रूप के, दिखलावे को ध्येय।।४
धन पाए नीयत गई , पद पाए ईमान ।
धन, पद बिना बघेल कब , कहा गया इंसान ।।५
धन था, नीयत नेक थी, धन की हुई न वृद्धि।
पद भी था ईमान भी , आई नहीं समृद्धि ।।६
धन साधन ऊंची पहुंच, या कि निकट संपर्क ।
गलत सही, सच भी सही, झूठे तर्क वितर्क।।७