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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

भोले

भोले

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सब लोग मुझे सताते है

भोला समझ के डराते है

मेरा दोष क्या है,साखी,

आंखों मे वो आंसू लाते है


सादगी दुश्मन बन गई है

सादगी ही सौतन बन गई है

जीते जी ही मेरी जिंदगी,

अब तो नरक बन गई है


क्या करे अब कहाँ जाये,

अपने ही मुझे भरमाते है

सादेपन में सेंध लगाते है

नादानी को मेरी जलाते है


खुलकर जी न पा रहा हूँ,

आंसुओ से नहा रहा हूँ

भोले साखी की जिंदगी,

शूलों से नुकीली बन गई है


फिर भी हिम्मत रख साखी

भोलेपन में है,ख़ुदा की लाठी

वो क्या जानेंगे खुश्बु की माटी

पास नही जिनके भोला साथी


ये गंगाजल से पावन होते हैं

येसादगीवाले खुदा को भाते हैं

बिना सादगीवाले सदा रोते हैं

भोले खुदा की रहमत पाते हैं।


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