शून्य
शून्य
कभी कभी लगता है ऐसे
जैसे कुछ खो गया हो मेरा अपना
कोई प्यारा, जीने का सहारा
अनंत व्योम की तरह
शून्य सा लगता है मेरा जीवन
जिसमें सबकुछ दिखाई तो देता है
परंतु कुछ रहता नहीं
संवेदनाओं की चादर में लिपटा
मेरा मन करवटें लेता है
सिसकते हुए, कराहते हुए
आंखों में अतल गहराई व्याप्त हो जाती है
शरीर निष्प्राण से लगने लगते हैं
मैं ढूंढने लगता हूं अपने जीवन का प्रयोजन
उलझा रहता हूं प्रश्नों में, गहन विचारों में
पीड़ा के अथाह सागर में गोते लगाता हूं
हरे घावों को सहलाता मैं
आसपास के वातावरण से दूर
जहां और कोई नहीं है
बस मैं हूं, मेरी सोच है
और मेरे कई सारे अनुत्तर प्रश्न हैं
सब कुछ होते हुए भी
नितांत अकेला पाता हूं स्वयं को
मुरझाए फूलों की तरह जीवन डाल से लगा हूं
जो कुछ ही पलों में
टूट कर बिखरने वाला है
इधर उधर हवा के झोंकों से
कुछ ही पल और
और फिर चारों तरफ सन्नाटा
शून्य ही शून्य
शून्य ही शून्य।
