हश्र
हश्र
भंडार कक्ष के अंधेरे कोने में
पड़ी खामोश गुड़िया
उस नन्ही बच्ची के
हाथों की छुअन को
शायद कहीं अब भी तरसती हो
अगले कमरे की
सामने वाली दीवार पर
टंगी उस कोमल तन्वी की
बनाई पेंटिंग का मोर
शायद अब भी नाच रहा हो
उस अल्हड़ लड़की के
सहलाए बेले के फूलों की
खुशबू से महकता सारा आंगन
संभव-- है अब भी चहकता हो
उस तरुणी की किताब में
दबी उस चिट्ठी को
अब भी कहीं आस हो
उन हाथों में पहुंचने की
जिनके लिए वह लिखी गई थी
इन सब से दूर जा चुकी
वह लड़की कहां खो गई
आह!!
आज वह अखबारों की खबर बन गई
आज वह अखबारों की खबर बन गई