Sheela Sharma

Inspirational

4.8  

Sheela Sharma

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जाग री

जाग री

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एक रोज ओस की बूंद नें 

गिर पत्तों पर सुहानी बात कही ऐसे

घने अंधेरे खौफनाक रातों से ना डर

जुगनू टिमटिमाते ऐसे 

तुम्हें शिक्षक बन शिक्षा दी किसने

पवित्रता के मापदंड संस्कार रीत रिवाज

के आदर्शों के पाठ पढ़ाये किसने

 

उसी ने ना , जिसने

स्त्री के देहाभिमान का 

शिकार कर तार तार जलील कर 

आपस में मिल बांट लहूलुहान कर

सम्मान की धज्जियां उड़ाकर 

अपनी गलतियों को पुरुषत्व 

और तुम्हारी स्वतंत्रता को

चरित्रहीन बताकर 

पारिवारिक सामाजिक आर्थिक 

तीनों धारों पर तुम्हें चला कर 

आज तक उसी मुनुपुत्र मानव ने 

अपनी पौरुषता सिद्ध की ?


गलती तुम्हारी है;

तुमने स्वयं अपने अधिकार 

पुरुषों को दे अपने अस्तित्व को मिटाया

उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर 

चलते हुए अपने को सांझा समझा

कभी तुमने अपने स्वरूप की

संवेदनाओं को सुदृढ़ बनाया

 

नहीं ना , त्याग मूर्ति बनी रहीं 

तुम तो शक्ति स्वरूपा हो जागो 

दरिंदों के खिलाफ जंग लड़ो 

जीवन रथयात्रा की तुम

अधिष्ठात्री, संचालिका 

अपनी क्षमताओं की

शक्तियों को पहचान कर आगे बढ़ो 


रौंद दो सदियों पुरानी 

पुरुष प्रधानता की प्रथाओं को

मिलजुल कर एकजुट हो सशक्त बनो

बचाना होगा तुम्हें अपने 

अस्तित्व को अस्मिताओं को

 क्योंकि ,

जब उड़ान पर किसी शिकारी की नजर हो

और निशाने पर हो जिंदगी

तो सुरक्षित लौटना भी एक चुनौती है

सोचो ,समझो, लड़ो 


अब जागो री

हाथ में हाथ मिला श्रंखला बन

जीवन समर में जीत हासिल करो


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