आईने की सीख
आईने की सीख
मन ही मन से बात करता
किससे कब क्या कैसे कहना
ढंग सिखाता
प्रत्युत्तर किसका क्या होगा
आगाज उसे हो जाता
विषम परिस्थितियों में
डूबकर नैया पार लगाता
हर्षित मन फिर भी
मंथन करता सोचता
साफ-सुथरी आज की जिंदगी भी क्या जिंदगी है
बचपन का भोलापन मिट्टी का खेल
अनुपम लगता
कभी सफल, असफल कभी हताश हो जब मैंने अपना अक्स आईने में देखा
जीवन शैली ताले की चाबी बना ली
जैसी भी जगह मिले
उसी अनुरूप बन तरल नदी
दिल से दिल की बात समझ जाए
उसे अपना ले जल्दी
रिश्तों से रास्ते रास्तों से रिश्ते बन जाते
अपने ही सत्कर्मों से बेसमय मिल जाते फरिश्ते
संघर्षों से जीत में तनहाई की टीस में
ना बेवजह कहना
बदहवासी में बेखयाली का न सुनना ना गुनना
जीवन एक किताब हर दिन मिलता ज्ञान हर पल होती परीक्षा प्रश्नों से अंजान आत्मविश्वास रख प्रतिपल
जितना मिल जाए ज्ञान
बिना बात उलझो नहीं
धर मौन राहें बने आसान
सादगी में ही सच्चा सुख है भाई
अक्स की यही सीख समझ में आई