"ध्येयपथ "
"ध्येयपथ "
है चाह ,ध्येयपथ खुले हृदय से,
सबके हित मे उत्कंठित ,
सहयोग समर्पित भाव से करता ,
उसकी राह मदद की है।
उभय पक्ष और लेन -देन में,
नैतिकता है सर्वोपरि,
है हाथ बढ़ाता, सबके हित को,
सक्षमता से संकल्पित।
फिर कभी-कभी देखा जाता है,
एक पक्ष की मक्कारी,
काम निकाला ,फिर वो बोला,
मुझे नहीं तुझसे यारी।
मुझे नहीं तुझसे यारी,
नहीं तेरी है जानकारी।
कौन है तू?, क्यों यहाँ खड़ा है?,
किसकी चाह तुझको है?,
फिर कहता, इधर क्यों ताके? ,
तेरी राह उधर को है।
ऐसी खुदगर्जी का आलम,
दुःख देता! दुःख देता है।
है चाह, ध्येयपथ खुले हृदय से,
सबके हित में उत्कंठित ,
सहयोग समर्पित भाव से करता,
उसकी राह मदद की है।
