"एक पल का भय "
"एक पल का भय "
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बछिया भीखू की हर रोज शाम चरने जाती,
एक रोज भीखू घर आया खेतों से,
देखा घर मे सन्नाटा था,
देखा सब दूर-दूर बैठे, सहमे से दुबके थे।
पूछा, सहमा सा वो अनहोनी के भय से ।
फिर पता चला, कल रात से बछिया गायब है।
तभी कही से शोर-शराबे, कोलाहल की आहट सी,
मंगरू चाचा बोल रहें, बछिया आयी,
एक पल बिछुड़ा संसार, भीखू ने पाया,
दर्द सहा जो दिन भर का उसे भुलाया,
ये जीवन भी इसी तरह का मेला है,
कभी बिछुड़न ,कभी मिलन की बेला है।