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"अभ्युदय "-3

"अभ्युदय "-3

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अब संगठन के गठन की तैयारी होने लगी। 4 लोग मिलकर पूरे शहर के विद्यालयों में घूमने शुरू कर दिए। सभी शिक्षक साथियों से मिलने का प्रयास किया जाने लगा। उनसे उनकी राय जानने की कोशिश हुई। संगठन में उनकी सहभागिता के संदर्भ मे उपयुक्त जिम्मेदारी की बात होने लगी। 

कुछ शिक्षक तो पदों की जिम्मेदारी लेने को तत्पर भी हो गये, उनको उनकी क्षमता के अनुरूप सम्मान पूर्वक जिम्मेदारी की सहमति भी बनने लगी। 

नया अध्यापक अपने साथियो के साथ छुट्टी के के दिन दौरा करता था। लगभग छुट्टी के दिन ही ये कार्यक्रम होता था। इन्हीं भागदौड़ के बीच एक छोटी सी घटना भी हो गई। चुकी नया अध्यापक परदेश में था, और अकेले अपने परिवार, पत्नी और छोटी बच्ची के साथ रहता था, उसको पारिवारिक जिम्मेदारी भी बहुत थी। 

सभी जिम्मेदारी के साथ भी उसने अपनी वचन प्रतिबद्धता बनाये रखा, साथियो के जरूरत के समय उनका साथ हमेशा देता था। 

अब धीरे-धीरे संगठन तैयार होने लगा संबंधित अध्यापकों को पद और जिम्मेदारी दी जाने लगी, एक दिन मीटिंग हुई और संगठन की घोषणा हो गई। 

तभी सक्षम साथी से उसके रिस्तेदार संपर्क करने लगे और संगठन तोड़ने की बात भी करते थे, वो तैयार भी हो गया था, बाकी सभी साथी उसके व्यहवार से चिंतित थे कि बड़ी बेइज्जती हो जाएगा ,वो मतलबी आदमी था, उसको केवल अपना दिखता था, केवल अपना लाभ देखता था। 


क्या वो संगठन तोड़ देगा? अगले अंक में। 


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