आत्मनिर्भर
आत्मनिर्भर
तुम धूमकेतु से लगते हो,
पीड़ित मन की अभिलाषा तुम।
ये देख के पीड़ा पीड़ित है,
नई दिशा के आशा तुम।
तुम रीति-नीति से चलते हो,
चाहे विराम या गति तेरी।
अभिव्यक्ति तुम्हारा व्याप्त ही है,
स्वावलंबन के ढाल तले।
संघर्ष तुम्हारा सब देखे ,
पर साथ नहीं कोई देता है।
ये मार्ग तुम्हारा अपना है,
तुम चल सकते हो, चलते रहो।
तुम धूमकेतु से लगते हो,
पीड़ित मन की अभिलाषा तुम।
