दिव्य अंश
दिव्य अंश
हे मानव! तू डरता क्यों? है साथ खड़ा एक दिव्य अंश,
पंखों को गति दे, कर हुलास, है साथ खड़ा एक दिव्य अंश।
तेरे जैसों की भीड़ यहां, तू किंचित मत कर भय और त्रास।
है लोक, यहां सब मिलते है,
कोई नर मिलता दैव रूप, कोई फिर मिलता है पिशाच।
पर साथ खड़ा तेरे दिव्य अंश, तू किंचित मत कर भय और त्रास।
ये तेरी जो बुद्धि है, तू कर यकीन उस माली पर,
जिसने सींचा निःस्वार्थ भाव,
तेरे कर्मों की शृंखला, है लेखा-जोखा जिसके पास।
जब काक पिपासा से व्याकुल, कण और क्षण का कर अभिज्ञान ,
वो करता जाता है प्रयास।
धीरे-धीरे जब तृप्त हुआ, अपने पंखों को गति देकर,
ऊपर अम्बर की ओर उड़ा।
है दीन आज, तो मत घबरा, तू भी करता जा प्रयास,
नव चेतना की करके आश ।
हे मानव ! तू डरता क्यों? है साथ खड़ा एक दिव्य अंश ,
पंखों को गति दे, कर हुलास ,है साथ खड़ा एक दिव्य अंश।
