ज़िन्दगी का सफर
ज़िन्दगी का सफर
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मंज़िल उन्ही को मिलती है
जो जिंदगी के सफर पे
जिंदादिली से निकलते हैं
सिर्फ़ पंखों से कुछ नहीं होता,
हौसलों से वो उड़ान भरते हैं
हौसला अगर बुलंद हो तो,
लयबद्ध ताल और छंद है
अन्यथा जिंदगी के सफर के दिन
बहुत ही चंद हैं
उठो भागो, सरपट दौड़ो,
क्या गति तुम्हारी मंद है?
देख लो कहीं तुम्हारे विवेक की
खिड़की तो नहीं बंद है?
अपने सोच को विकसित
सिर्फ़ तुम ही तो कर पाओगे
जिंदगी के सफर को एक नया आयाम
सिर्फ़ तुम ही दे पाओगे
कोई न होगा संग तुम्हारे,
मंज़िल अकेले ही पानी है
कर लो तुम कुछ नेक कमाई,
दुनिया तो ये फानी है
क्या कहोगे उस रब से,
जब पास उसके जाओगे
सिर्फ़ इच्छा कामना ही की
क्या ये कह पाओगे?
अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है,
कर लो कुछ सत्कर्म तुम
जीवन-सफर की
मंज़िल सिर्फ़ ख़ुदा है,
जान लो ये मर्म तुम...