सत्य की राह
सत्य की राह
दुख आता तो है पर वो टिकता नहीं ,
बादलों में सदा चाँद छुपता नहीं ।
मुश्किलों का जो राहु अगर ग्रस भी ले,
है सफर तो दिवाकर का रुकता नहीं।
काम करने की मन में लगी धुन जिसे,
कभी परिणाम से वो है डरता नहीं।
चाहे तूफान कितने भी आएँ मगर,
लक्ष्य से वह कभी अपने डिगता नहीं।
सत्य की राह पर जो है चलता रहे,
कंटकों की है परवाह करता नहीं।
जिंदा रहता है सबके दिलों में वही,
मरकर भी कभी है वो मरता नहीं।
जीने का भला कोई मतलब है क्या,
जो परायों के दुख को समझता नहीं।
मर गयी है किसी की अगर भावना,
वो किसी भी तरह से पिघलता नहीं।
मानवता की सेवा सदा जो करे
बद्दुआओं से झोली है भरता नहीं।
जननी जन्मभूमि को पूजे सदा,
माथे का है चंदन जो झड़ता नहीं।
दीप बन के जले जो अमा रात में,
आँधियों में कभी भी वो बुझता नहीं।
आँच में गम की तपकर जो कुंदन हुआ,
ठोकरों से कभी भी बिखरता नहीं।
प्रेम का स्वाद जिसने भी है चख लिया,
दूसरा फिर कोई स्वाद चखता नहीं।
है सभी जीवों में ईश को देखता,
सिर्फ इसके सिवा कुछ भी दिखता नहीं।
भलाई का जिसको चढ़ा हो नशा,
दूसरा फिर नशा कोई चढ़ता नहीं।
सिर्फ अपने सुखों की जो सोचे सदा,
भव-सागर से फिर वो है तरता नहीं।