गुरु -महिमा
गुरु -महिमा
जिसने भजन गुरु का ना कीन्हा, उसने जीवन व्यर्थ ही गवाया।
मानव जन्म बड़े भाग्य से मिलता, यह महापुरुषों ने भी बतलाया।।
तीर्थ चाहे तुम जितने भी कर लो, गर मन वश में ना कर पाया।
बाहरी आडंबर से कुछ नहीं होता ,अगर आंतरिक सत्संग ना पाया।।
संसार और परमार्थ को ऐसे समझो, जैसे कीचड़ ने कमल है खिलाया।
गर दोनों को लेकर साथ चलोगे, कर ना सकेगी कुछ भी माया।।
श्री राम, कृष्ण ने भी गुरु को माना, सर्वस्व था उन पर लुटाया।
गुरु का दर्जा है इतना ऊँचा, वेद -पुराणों ने भी बतलाया।।
अगर चाहते हो जीवन में मुक्ति ,"साधन" सरल गुरु ने बतलाया।
नक्शे कदम पर चल कर तो देखो," नीरज" ने तो है आजमाया।।