धूप, चांदनी और स्त्री
धूप, चांदनी और स्त्री
सूरज का अस्तित्व
धूप से है
और चांद का अस्तित्व
चांदनी से
क्या स्त्री का अस्तित्व
उसके सौंदर्य से है
अथवा
सौंदर्य स्त्री में
निहित है
पुरूष हमेशा
अपने पुरूषत्व से
जाना जाता है
चाहे वह नपुंसक ही क्यों न हो
लेकिन स्त्री का स्त्रीत्व
उसकी तासीर से है
धूप से है चांदनी से है
कभी गुनगुनी धूूप कभी प्रचंड धूप
कभी मुलायम रेशमी चांदनी से
धूप की ऊष्मा
चांदनी की वितृृष्णा
स्त्री की रिक्तता
सौलहों श्रृंगार में
उड़ा देती है
प्रेम की धज्जियां
पिलपिले आश्चर्य को
एक ही बार में
निचोड़ जाती है
धूप और चांदनी
खुली किताब है
और स्त्री
धूं धूं जलती हुई एक इमारत
इसीलिए कहता हूूँ
स्त्री एक त्राासदी है
धूप और चांदनी के बीच!