गुरू ज्ञान
गुरू ज्ञान
आधुनिकता की अँधी दौड़
सब कुछ बदल रहा है
क्या इंसान क्या इंसान की फितरत
इक दूजे के सिर चढ़ बोल रहा।
जिसे देखो वह गुरू बनता जा रहा
पता हो या न हो,अपना ज्ञान झाड़ रहा
मन झाँका नहीं दूजे नुक्स निकाल रहा
सोच दूषित हो चाहे दूजे को समझा रहा।
गुरू वही जो हमें देते ज्ञान
जग में मिले जिन्हे सम्मान
जिनके गुणों का न हो सके बखान
प्रभु समान होता गुरू का स्थान ।
मात-पिता का दूजा रूप गुरू
साक्षात प्रभु प्रतिमूरत गुरू
ब्रह्मा विष्णु महेश भी गुरू
हम सबके पालनहार गुरू ।
इतिहास साक्षी है हमारे
गुरू ज्ञान ने हर बला से तारे
भव सागर से पार करवाए
है गुरू को मेरा प्रणाम बारम्बार ।
