वसंत पंचमी
वसंत पंचमी
हर साल वसंत पंचमी आती,
वो कर रुत पावन मादक जाती।
बहे बासंती बयार फिजा में,
फागुन के रंग हृदय छलकाती।
वो क्षितिज-धरा का मिलन कराती,
हर साल वसंत पंचमी आती।।
है नयी जवानी, नयी उमंगें,
अब उठें तरंगै सबके मन में।
ले, नयी उपज की नवल कोंपलें,
फूटें खेतों में, वन -उपवन में ।
सब जन-गण मन को वह मदमाती,
हर साल वसंत पंचमी आती।।
मौसम से रंग चुराकर लाती,
वो आलसियो को वही जगाती।
वह खुशहाली का मेला लाती,
सद्भाव जगत में है फैलाती ।
ऋतु वसंत की जब भी है आती,
माघे-शुक्ल पंचमी कहलाती ।।
होता शारदे मात का यह दिन,
ज्ञान होय नही साधना के बिन।
बस हर साल प्रतीक्षा में गिन-गिन,
सरगम की धुन करती-धिन-धिन ।
आराधना वागीश की जाती ,
हर साल वसंत पंचमी आती।।
विद्या दायिनी मात की पूजा,
सच्चे मन से हम रोज करें।
हमपूजा का असली भाव- अर्थ,
इस जीवन में सदा प्रयुक्त करें।
अज्ञान तमस को दूर भगाती ,
हर साल वसंत पंचमी आती ।।
माता सरस्वती के धवल वस्त्र,
नीर क्षीर विवेकी वाहन हंस।
रखती आसन पंक रहित पंकज,
रख माथे पे उनकी चरणधूलि ।
दे वरदान मात कितने ठजाती ,
हर साल वसंत पंचमी आती ।।
