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V. Aaradhyaa

Abstract Classics Inspirational

4  

V. Aaradhyaa

Abstract Classics Inspirational

एक नारी का जयघोष...

एक नारी का जयघोष...

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उस स्त्री का उद्घोष ....कुछ ऐसा कि...


इस कुरीतियों से भरे हुए समाज का,

मैं बचा हुआ छोटा सा आकार हूँ !


अपराधों की दबी ढकी कोने में रखी किताब हूँ,

झुठ से ढकी हुई उदित सच्चाई क्या इजहार हूँ !


बुराई अच्छाई सत्य, भलाई का सरोकार हूँ,

अन्याय से दबे हुए न्याय की गुंज व पुकार हूँ !


स्वयं के सुख तो मुझे कभी याद नहीं रहते,

पर सहती हुई दुसरो के दुखों का भण्डार हूँ !


हजारों लोगों के ग़म लेकर भी मैं लाचार हूँ,

मैंने अपने कन्धों पर रखा हुआ एक भार हूँ !


इस समाज के बनाए हुए मूल्यों का आधार हूँ,

कोई रंग महल नहीं बस गरीबों का दरबार हूँ !


नकल से निरस हुई असल का सही सार हूँ,

शौक से पिरोई माला नहीं मेहनत का हार हूँ !


बल से हराये हुऐ निर्बल के अन्दर की टंकार हूँ,

पथ भ्रष्ट लोगों के सन्मार्ग काम ठीक विचार हूँ !


रोती बिलखती अबलाओं की चीख पुकार हूँ,

मैं अपने ही अस्तित्व को रोपने की हकदार हूँ !


बुझी हुई आत्माओं में भी एक नया संचार हूँ,

सोया स्वाभिमान जगाने वाली चौकीदार हूँ !


कागज़ पर उकेरती शब्दों का छायाकार हूँ,

फूल के संग पनपता हुआ सुगंध का हार हूँ !


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