मैं शुष्क भूमि सा प्यासा हूँ
मैं शुष्क भूमि सा प्यासा हूँ
मैं शुष्क भूमि सा प्यासा हूँ, नीर भरी बदरी बन जाओ।
गीत सुनहरे रचूँ यहाँ मैं, तुम्हीं कंठ से इनको गाओ।।
तेरा तन उजला उजला सा, मैं श्यामल देह लिए फिरता।
तू लगे चाँदनी की आभा, मैं हूँ सूरज सा नित जलता।
कैसे होगा मिलन हमारा, कोई जतन मुझे बतलाओ।।
मैं शुष्क भूमि सा ----------
मन अधीर व्याकुल है मेरा, दरश बिना कैसे रह पाऊँ।
उर को पावन मंदिर कर लूँ, मूर्ति तुम्हारी प्रिये ! सजाऊँ।
पतझड़ में सूखे तरुवर सा, छूकर मुझको तुम महकाओ।।
मैं शुष्क भूमि सा-----------
बनकर याचक खड़ा द्वार पर, पात्र प्रीति के धन से भर दो।
जीवन के इस मरुथल को अब, निज चितवन से स्वर्णिम कर दो।
घोर निराशा का अँधियारा, आशा का अब दीप जलाओ।।
मैं शुष्क भूमि सा--------