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अरविन्द त्रिवेदी

Abstract Inspirational

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अरविन्द त्रिवेदी

Abstract Inspirational

स्त्री

स्त्री

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सबने पृथक-पृथक,

परिभाषा बतलाई है।

हमें प्रेम का बोध कराने,

वो धरती पर आई है।

शक्तिस्वरुपा जन्मदायनी,

ममता का भण्डार है।

ईश्वर द्वारा मिला हमें,

वो अद्वितीय उपहार है।

त्याग, दया, ममता, क्षमता,

साहस, प्रेम, दुलार है।

परिवारों की बुनियाद बनी,

पावन रिश्तों का सार है।

धरती जैसी विस्तृत वह,

निर्मल गंगा की धार है।


स्त्री ही जगत का मूल है।

स्त्री ही आधार है।


जग से मिली वेदनाओं को,

निज अन्दर सदा सहेजा है।

अपने सतीत्व के बल पर,

जिसने काल को वापस भेजा है।

उसकी ममता पाने की खातिर,

देवता धरा पर आते हैं।

भक्ति भाव में श्री राम,

जूठे बेर भी खाते हैं।

स्वाभिमान की अमिट कथायें,

जलती जौहर की ज्वाला है।

नित पीड़ा का सेवन करती,

वो मीरा के विष का प्याला है।

अपनों के दु:खों की आयातक,

खुशियों का रचती संसार है।


स्त्री ही जगत का मूल है।

 स्त्री ही आधार है।


फिर क्यों हर पग स्त्री को,

अपमान उठाना पड़ता है।

फिर क्यों प्रतिदिन लोगों को,

आखिर समझाना पड़ता है।

आओ हम सब मिलकर,

इक नई चेतना का निर्माण करें।

आँगन खुशियों से रहे भरा,

स्त्री का सब सम्मान करें।

माँ, बहन, पत्नी, बेटी,

उसके रुप अनेक हैं।

सकल चराचर सृष्टि में,

उसकी उपस्थिति विशेष है।

आदर की प्रतिमूर्ति सरीखी,

करुणा का अवतार है।

सेवा में तत्पर रहती निशदिन,

हे स्त्री ! नमन तुम्हें बारम्बार है।


स्त्री ही जगत का मूल है।

स्त्री ही आधार है।


  


   


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