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अरविन्द त्रिवेदी

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अरविन्द त्रिवेदी

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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गहरे थे रिश्ते जो उनके रंग क्यों फीके मिले ।

रेशमी चादर के धागे रोज़ ही उधड़े मिले ।


आशिकी माशूक से हो या वतन की आन से,

इश्क में कुर्बानियों के कितने ही किस्से मिले ।


मैं तजुर्बे का ख़ज़ाना खोजता जिनमें रहा,

शख़्स कितने ही ज़हन से मुझको तो बच्चे मिले ।


सूख जाते ज़ख्म सारे इस बदन के, साथ से

क्या जरूरत है दवा की यार जब सच्चे मिले ।


कोसते हैं रोज़ मुस्तकबिल यहाँ पर आलसी,

करके मिहनत लोग कितने मुझको तो हँसते मिले ।


सच को पाना है मुसाफ़िर मुश्किलों का काम पर,

बस्तियों में झूठ की इंसान सब सहमें मिले ।


कैसे पहचाना नहीं "अरविन्द" तूने फर्क तक,

ज़िन्दगी के इस सफ़र में लोग जो अच्छे मिले ।


  

         


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