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अरविन्द त्रिवेदी

Abstract Inspirational

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अरविन्द त्रिवेदी

Abstract Inspirational

शब्द

शब्द

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ज्ञान भाषा का मुझको नहीं है मगर,

भावनाएँ हृदय की मैं पढ़ने लगा।

बोध कुछ भी नहीं व्याकरण का मुझे,

वेदनाएँ जगत की मैं गढ़ने लगा।।


क्षीण से जब लगे भाव मन के सभी,

शब्द की नाव का फिर सहारा मिला।

भग्न स्वप्नों ने जब भी डुबोया मुझे,

लेखनी थाम ली, फिर किनारा मिला।

मूर्त जीवन हुआ साधना मात्र से,

रिक्त अन्तस पुनः देख सजने लगा।।


शब्द के ज्ञान बिन तूलिका व्यर्थ है,

मूक भावों को मन के सँवारे यही।

अंश है ब्रह्म का शब्द जग में समझ,

सृष्टि की व्यंजना को निखारे यही।

अस्त्र हो यदि कलम शब्द से बल मिले,

सामना हर बुराई से करने लगा।।


ओज की गर्जना है निहित शब्द में,

सत्य का तेज इसमें समाया हुआ।

भक्ति, तप, प्रेम का बीज है शब्द यह,

ज्ञान रूपी नदी में नहाया हुआ।

शब्द को पृष्ठ पर लेखनी जब गढ़े,

सार पढ़कर ये जीवन महकने लगा।


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