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अरविन्द त्रिवेदी

Abstract

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अरविन्द त्रिवेदी

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शिव स्तुति

शिव स्तुति

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गल माल सुशोभित नागन की,

तन पै शिव भस्म लगावत है।

करि पान हलाहल शंकर ही,

नित सृष्टि अनूप रचावत है।


कर जोरि भगीरथ पैर पड़ो,

जल गंग जटा ठहरावत है।

धरि वेष दिगंबर पीर हरै,

शिव नाथन नाथ कहावत है।।


विधि शोक भयो गति सृष्टि रुकी,

शिव दर्शन दै पुनि ज्ञान दियो।

तप खंड कियो रतिनाथ जरा,

विनती सुनि कै वरदान दियो।


सुनि क्रोध सती मख दक्ष जरी,

हति दक्षहिं जीवनदान दियो।

अवलम्ब अगोचर शम्भु सदा,

निज भक्तन को नित मान दियो।।


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