खत्म 'अरविन्द' ना हो किस्सा, इस कलम का हुनर बाकी है ।
ठिठुर रहा है तन सर्दी से, रवि की ज्वाला में तपता हूँ।। ठिठुर रहा है तन सर्दी से, रवि की ज्वाला में तपता हूँ।।
घोर निराशा का अँधियारा, आशा का अब दीप जलाओ।। मैं शुष्क भूमि सा-------- घोर निराशा का अँधियारा, आशा का अब दीप जलाओ।। मैं शुष्क भूमि सा--------
है अखंड यह विश्व गुरू भी, भारत सबको प्यारा है।। है अखंड यह विश्व गुरू भी, भारत सबको प्यारा है।।
रेत पर मिले पदचिह्न तेरे, मेरे ख़याल में कोसों तक गये होंगे, रेत पर मिले पदचिह्न तेरे, मेरे ख़याल में कोसों तक गये होंगे,
गहरे थे रिश्ते जो उनके रंग क्यों फीके मिले रेशमी चादर के धागे रोज़ ही उधड़े मिले। गहरे थे रिश्ते जो उनके रंग क्यों फीके मिले रेशमी चादर के धागे रोज़ ही उधड़े ...
अवलम्ब अगोचर शम्भु सदा, निज भक्तन को नित मान दियो।। अवलम्ब अगोचर शम्भु सदा, निज भक्तन को नित मान दियो।।
समय-समय पर हृदयों की भी, अब पीर बदलती रहती है। समय-समय पर हृदयों की भी, अब पीर बदलती रहती है।
शब्द को पृष्ठ पर लेखनी जब गढ़े, सार पढ़कर ये जीवन महकने लगा। शब्द को पृष्ठ पर लेखनी जब गढ़े, सार पढ़कर ये जीवन महकने लगा।
त्याग वैभव वनों में भी सुख पा लिया - त्याग वैभव वनों में भी सुख पा लिया -
स्वाभिमान की अमिट कथायें, जलती जौहर की ज्वाला है। स्वाभिमान की अमिट कथायें, जलती जौहर की ज्वाला है।