मैं भी किसान का बेटा हूँ
मैं भी किसान का बेटा हूँ
मैं भी किसान का बेटा हूँ,
कृषकों का दर्द समझता हूँ।
लाख कष्ट घेरें मुझको पर,
मैं कभी न आहें भरता हूँ।।
खेत हमें मंदिर लगता है,
यह खेती जैसे पूजा है।
अन्न हमें लगता प्रसाद सा,
भाता कार्य कहाँ दूजा है।
सबको रोटी देकर जग में,
क्यों स्वयं भूख से मरता हूँ ?
मैं भी किसान------
बंजर भूमि जोतकर हल से,
जग में हरियाली भर देता।
त्रसित क्षुधा से व्यथित जगत में,
चहुँ दिश खुशहाली भर देता।
डगमग चलती जीवन नौका,
डर - डरकर आगे बढ़ता हूँ।।
मैं भी किसान--------
खून पसीना बोकर अपना,
माटी से है फसल उगाई।
आखिर क्यों समाज ने हमको ?
राह उपेक्षित है दिखलाई।
ठिठुर रहा है तन सर्दी से,
रवि की ज्वाला में तपता हूँ।।
मैं भी किसान--------