धरती और बसंत
धरती और बसंत
पंचतत्व की दुनिया सारी,
मिट्टी से मानव की क्यारी।
भरा भरा जीवन ये सारा,
फूलों सी महकी फुलवारी।
सृजनहर्ता मात दुलारी,
धरती माँ की गोद ये न्यारी।
यही बिछौना यही खिलौना,
पूजे इसको सृष्टि सारी।
पीले पात का त्याग करे,
पतझड मे भी हिम्मत धारी,
बसंत मे फिर खिल जाए,
खेले होली हो मतवारी।
सोंधी खुशबू आँचल से जो,
ममतावाली राजदुलारी।
भेद ना माने उँच नीच का,
समत्व की करे रखवारी।
उपजे इससे, बोए इसमें,
फिर फिर चक्र चलाने वारी।
जीवन मृत्यु का आलिंगन,
सम औ शम ये समताधारी।
जान न्योछावर इस पर करते,
प्राणों से इन्दु ये प्यारी।
अपनी मिट्टी, वतन ये अपना,
सौ माँओं की ये महतारी।
