तीन दृष्टिकोण
तीन दृष्टिकोण
एक दृष्टि
ये तिथियाँ
ये दिन ये ने दिनमान
सब कुछ नया
पुरानी
जो नींव रखी थी ना
किसी ने
उसी पर खड़ा है
ये महल
जो हर रोज
दिल से झुकना चाहता है
उस नींव के समक्ष
जिसके बिना
आज कुछ भी
नया और सुन्दर
नहीं होता!!!
एक दृष्टा-
ये तिथियाँ
ये दिन
ये दिनमान
हर रोज नयापन
सिर्फ अहसास
सत्य सुदूर इससे
परिवर्तनशील संसार में
कुछ भी नया नहीं
बस चक्र है घूमता रहता है
और हम
नया जान
खुश हो लेते हैं !
एक सृष्टि-
ये दिन
ये तिथि
ये दिनमान
फिसल जाने वाले।
आओ जी लें
इस पल को
जीभर
कल एक नई सुबह
का इन्तजार
क्यूँ करें।