STORYMIRROR

Indu Jhunjhunwala

Abstract

4  

Indu Jhunjhunwala

Abstract

मन का पर्यावरण

मन का पर्यावरण

1 min
371

पर्यावरण

अब फिक्र हो रही है

कभी अधिक गर्म 

तो कहीं अधिक सर्द

पेडों की कटाई

प्रलुप्त होती पंक्षियों

जानवरों की प्रजातियाँ

ग्लोबल वार्मिंग की वार्निंग 

सहमते चेहरे।


उपाय है अभी भी

स्वार्थ से ऊपर उठकर

जीने की कोशिश भर

ऊपरी सुविधा के जंजाल से

 छूटने का प्रयास

दिखावों की कूटनीति से

बाहर निकल

सरल सहज जीने की

 एक निर्दोष कोशिश

बस इतना ही चाहिए


मन के पर्यावरण को भी

अकेलेपन की ऊँची 

चीखती दिवारों से बचाना हो तो

समय है अभी भी


मन का हो या तन का

स्वस्थ रहना पहली शर्त है 

जीवन के आन्नद को भोगने के लिए

पर त्याग के साथ

'त्यक्तेन भुंजिथा'

ऐसे ही नहीं लिखा ऋषियों ने

हजारों हजार साल पहले भी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract