मन का पर्यावरण
मन का पर्यावरण
पर्यावरण
अब फिक्र हो रही है
कभी अधिक गर्म
तो कहीं अधिक सर्द
पेडों की कटाई
प्रलुप्त होती पंक्षियों
जानवरों की प्रजातियाँ
ग्लोबल वार्मिंग की वार्निंग
सहमते चेहरे।
उपाय है अभी भी
स्वार्थ से ऊपर उठकर
जीने की कोशिश भर
ऊपरी सुविधा के जंजाल से
छूटने का प्रयास
दिखावों की कूटनीति से
बाहर निकल
सरल सहज जीने की
एक निर्दोष कोशिश
बस इतना ही चाहिए
मन के पर्यावरण को भी
अकेलेपन की ऊँची
चीखती दिवारों से बचाना हो तो
समय है अभी भी
मन का हो या तन का
स्वस्थ रहना पहली शर्त है
जीवन के आन्नद को भोगने के लिए
पर त्याग के साथ
'त्यक्तेन भुंजिथा'
ऐसे ही नहीं लिखा ऋषियों ने
हजारों हजार साल पहले भी।