STORYMIRROR

Indu Jhunjhunwala

Abstract

4  

Indu Jhunjhunwala

Abstract

रुका जो वक्त

रुका जो वक्त

1 min
170

रुका जो वक्त देखो हम, उसे भी कैद कर लेते ।

अपनी ख्वाहिशों के तले, उसे भी हम कुचल देते।


खर्च करते बहुत थोड़ा, या पानी-सा बहा देते।

खुद भी सोते रह जाते, दुनिया को सुला देते।


ढंग कुछ और ही होते, नेता गरचे बन जाते, 

मिलता जो समय हमको, तिजोरी में जमा देते। 


दिन होता न रातें भी, न नीला आसमां दिखता।

सूर्य को मुठ्ठी में बाँधे, इन्दु को भी सजा देते।


चन्द सिक्कों की खातिर, बिक गए हैं इन बाजारों में।

क्या इसको बेचकर के फिर, जीने का मजा लेते ।


खाक जी पाएंगे हम तुम, अमावस को न चाहेंगे।

ईद के चाँद को पाकर कैसे फिर दुआ देते ।



विषय का मूल्यांकन करें
लॉग इन

Similar hindi poem from Abstract