तन्हा कैसे कहूँ
तन्हा कैसे कहूँ
जब खुद के साथ हूँ तो तन्हा कहूँ कैसे।
ये तो साए से भी जियादा साथ होता है।
अकेली रातों में थाम कर मेरी बाहें,
बैढता है वो पास मेरे लोरियाँ सुनाता है।
घर के खाली कोनों में गुमसुम जो रहूँ,
बीती बातों को ले जी मेरा बहलाता है।
क्यूँ कहूँ कैसे कहूँ, तनहा हूँ मैं,
हमसफर सा वो जन्मों का साथी होता है।
जो साथ उसके रहूँ तो तन्हा कहूँ कैसे,
वो साए से भी जियादा साथ होता है।