अनन्त इच्छाएं
अनन्त इच्छाएं
हैं अनन्त इच्छाएं सभी की,
पाना ही सीखा है देना भूल गया।
सोच में खोट बनी रहती है,
भृकुटी उसकी तनी रहती है।
उलझन में ही हरदम रहता,
अपनों से भी कुछ न कहता।
कहां से आए कैसे पैसा,
तिकड़म में ही लगा रहता है।
अनन्त ख्याल आते हैं मन में,
भंडार भरे जाते हैं घर में।
दिल उसका हरदम है रोता,
रात रात भर वह न सोता।
लालच में अपनों को खोता,
खोकर उनको खुद ही रोता।
सोच रहा है बैठ अकेला,
क्यों सुधि मेरी कोई न लेता।
