टूट के चट्टानों की..
टूट के चट्टानों की..
टूट के चट्टानों की माटी होना
अंजाम उनका तय हैं
मगर माटी से वटवृक्ष उभरे
तो छैनी की जय हैं
जिंदगी जंग हैं जिंदगीभर की
न तरस हैं इसको किसी तड़प पे
ब्रम्हांड का एक कण न छुटता
चुनौतियों की झड़प से
एक बूंद ही छू लो बरखा का
कण कण में एक कहर हैं
छूना चाहता हैं माटी को
लेकिन टूट जाने का डर हैं
कही खामोशी के तले
तो कही हजारों तरह के शोरों में
हर कोई झुंझ रहा हैं
सरगम को तोड़ रहे अड़ियल स्वरों से।
